पूज्य गुरुजी, श्री गोलवलकर,
एक बार प्रवास के समय, किसी दलित वृद्धा की झौंपड़ी में रुके और चाय पीने की इच्छा व्यक्त की।
वृद्धा ने बड़े प्रेम से "काली" चाय बनाई, क्यों कि घर में दूध था नहीं।
बाद में छलनी न होने से अपनी साड़ी के ही मैले #पल्लू से छानकर परोस दी।
साथ वाले लोगों ने कुछ पी कुछ नहीं पी, पर श्री गुरुजी ने स्नेह से मुस्कुराते हुए उसे समाप्त किया।
बाद में उन्होंने कार्यकर्ताओं को बताया, "तुमको उसकी मलीनता दिख गई, पर प्रेम नहीं दिखा!"
ये,
श्री गुरुजी ही थे, जिनकी पहल के कारण #कट्टर नैष्ठिक ब्राह्मण भी दलितों को अपने साथ भोजन कराने लगे।
जब #धर्म संसद ने "हिंदव: सोदरा: सर्वे, न हिन्दू पतितो भवेत्" का प्रस्ताव पारित किया तो वे नाचने लगे!!
सामाजिक समरसता के प्रति वे इतने आग्रही थे कि "अग्नि का स्पर्श न करने वाले सन्यास धर्म के कठोर अनुशासन को" ताक पर रख, झुग्गियों की खाक छानते फिरे।
आज,
कुछ दलित #कठपुतलियां जब "बंच ऑफ़ थॉट्स" का हवाला दे, दलित विरोधी "आलेख" लिखती हैं तो उनकी मानसिक बीमारी की गहराई का पता चलता है!!
नेहरुवादियों ने जिस दलित वोट के बल 70वर्ष राज किया था और "बहनजी" जिनकी छाती पर पैर रख तीस रुपैया मासिक से "तीस हजार करोड़ की स्वामिनी" बन बैठी उस दलित को सच्चे अर्थों में यदि पूर्ण सम्मान और आत्मसम्मान का दर्जा दिया तो वह पूज्य गुरूजी पोषित संघ ही है।
एक परिपक्व अभिभावक की तरह, दलितों की गालियां खाकर भी स्वयंसेवक कभी विचलित नहीं होते।
यह संघ ही है जिसके विभिन्न पदों पर बहुत सारे कथित दलित वर्ग के बन्धु रात दिन मातृभूमि की सेवा साधना में रत हैं। वे कभी "हाय हाय" नहीं करते और "दलित मानसिकता" के घुटन भरे #तिलिस्म से बाहर आ चुके हैं।
जितनी घातक "सवर्ण मानसिकता" है उससे कहीं अधिक घातक "दलित मानसिकता" है, क्यों कि सवर्ण मानसिकता तो राष्ट्र को नुकसान करती है, जबकि "दलित मानसिकता" स्वयं उसे ही हानि पहुँचाती है। वह पल पल #आक्रोश में जीता है, हीन ग्रंथि इतनी प्रबल हो जाती है कि वह किसी सामान्य से ठीक से बात नहीं कर सकता, उसका आत्मविश्वास तबाह हो जाता है, अपने परिवार से कट जाता है, और क्षणिक आवेश में ही गाली गलौज पर उतर जाता है, फिर एक न अंत हो सकने वाले #द्वन्द्व में जीता है।
शायद यह, श्री गुरूजी जैसों को निरन्तर गाली देने और "सेक्युलरों" की चरण वन्दना का अभिशाप हो।
#jagdish pachpadra
Jagdish mali
एक बार प्रवास के समय, किसी दलित वृद्धा की झौंपड़ी में रुके और चाय पीने की इच्छा व्यक्त की।
वृद्धा ने बड़े प्रेम से "काली" चाय बनाई, क्यों कि घर में दूध था नहीं।
बाद में छलनी न होने से अपनी साड़ी के ही मैले #पल्लू से छानकर परोस दी।
साथ वाले लोगों ने कुछ पी कुछ नहीं पी, पर श्री गुरुजी ने स्नेह से मुस्कुराते हुए उसे समाप्त किया।
बाद में उन्होंने कार्यकर्ताओं को बताया, "तुमको उसकी मलीनता दिख गई, पर प्रेम नहीं दिखा!"
ये,
श्री गुरुजी ही थे, जिनकी पहल के कारण #कट्टर नैष्ठिक ब्राह्मण भी दलितों को अपने साथ भोजन कराने लगे।
जब #धर्म संसद ने "हिंदव: सोदरा: सर्वे, न हिन्दू पतितो भवेत्" का प्रस्ताव पारित किया तो वे नाचने लगे!!
सामाजिक समरसता के प्रति वे इतने आग्रही थे कि "अग्नि का स्पर्श न करने वाले सन्यास धर्म के कठोर अनुशासन को" ताक पर रख, झुग्गियों की खाक छानते फिरे।
आज,
कुछ दलित #कठपुतलियां जब "बंच ऑफ़ थॉट्स" का हवाला दे, दलित विरोधी "आलेख" लिखती हैं तो उनकी मानसिक बीमारी की गहराई का पता चलता है!!
नेहरुवादियों ने जिस दलित वोट के बल 70वर्ष राज किया था और "बहनजी" जिनकी छाती पर पैर रख तीस रुपैया मासिक से "तीस हजार करोड़ की स्वामिनी" बन बैठी उस दलित को सच्चे अर्थों में यदि पूर्ण सम्मान और आत्मसम्मान का दर्जा दिया तो वह पूज्य गुरूजी पोषित संघ ही है।
एक परिपक्व अभिभावक की तरह, दलितों की गालियां खाकर भी स्वयंसेवक कभी विचलित नहीं होते।
यह संघ ही है जिसके विभिन्न पदों पर बहुत सारे कथित दलित वर्ग के बन्धु रात दिन मातृभूमि की सेवा साधना में रत हैं। वे कभी "हाय हाय" नहीं करते और "दलित मानसिकता" के घुटन भरे #तिलिस्म से बाहर आ चुके हैं।
जितनी घातक "सवर्ण मानसिकता" है उससे कहीं अधिक घातक "दलित मानसिकता" है, क्यों कि सवर्ण मानसिकता तो राष्ट्र को नुकसान करती है, जबकि "दलित मानसिकता" स्वयं उसे ही हानि पहुँचाती है। वह पल पल #आक्रोश में जीता है, हीन ग्रंथि इतनी प्रबल हो जाती है कि वह किसी सामान्य से ठीक से बात नहीं कर सकता, उसका आत्मविश्वास तबाह हो जाता है, अपने परिवार से कट जाता है, और क्षणिक आवेश में ही गाली गलौज पर उतर जाता है, फिर एक न अंत हो सकने वाले #द्वन्द्व में जीता है।
शायद यह, श्री गुरूजी जैसों को निरन्तर गाली देने और "सेक्युलरों" की चरण वन्दना का अभिशाप हो।
#jagdish pachpadra
Jagdish mali
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